Accupressure: Chikitsa ka ek prachin upay

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Accupressure: Chikitsa ka ek prachin upay

एक्यूप्रेशर चिकित्सा की एक प्राचीन उपाय हैं |एक्यूप्रेशर एक प्राचीन चीनी पद्धति हैं | जिससे स्वस्थ्य लाभ आज पूरा विश्व ले रहा हाँ |
Accupressure: Chikitsa ka ek prachin upay,एक्यूपंक्चर चिकित्सा पद्धति का सिद्धांत,यिन-यांग थियोरी;मेरेडियन बिंदु क्या हैं ?अकुपंक्चरे करने की प्रणाली

Content :




एक्यूप्रेशर क्या है?

एक्यूप्रेशर एक चिकित्सा पद्धति है जिसमें शरीर के विभिन्न हिस्सों पर दबाव डालकर रोगों का इलाज किया जाता है इस चिकित्सा पद्धति का जन्म चीन में हुआ था धीरे-धीरे आज की तारीख में यह चिकित्सा पद्धति विश्व के समस्त देश में प्रयोग की जाती है

एक्यूपंक्चर चिकित्सा पद्धति में हाथ की हथेलियां पर और पैर के तलवों पर यह माना जाता है कि शरीर के विभिन्न अंगों की नसें कोशिकाओं के माध्यम से आपस में जुड़ी हुई हैं, जिसमें उचित मात्रा पर दबाव डालने पर, उसे कोशिकाओं के माध्यम से, रोगों में सुधार होता है और शरीर पूर्णतया स्वस्थ होता है|

एक्यूपंक्चर चिकित्सा पद्धति का सिद्धांत

एक्यूपंक्चर चिकित्सा पद्धति यिन-यांग थियोरी और पांच तत्व के सिद्धांत पर आधारित है| इसके अलावा इसका दूसरा सिद्धांत है, शरीर में प्राण शक्ति का प्रवाह और मेरिडियन तत्वों पर दबाव |यहां पर हम नियम  की विस्तृत चर्चा करेंगे |

यिन-यांग थियोरी

इस चिकित्सा पद्धति में यह माना जाता है कि मनुष्य के शरीर में दो शक्तियां होती हैं | पहले शक्ति जिसे हम 

यिन कहते हैं और दूसरी शक्ति जिसे हम यांग  कहते हैं | यिन शक्ति मनुष्य के शरीर में स्ट्रांग अंदरूनी स्थिरता और शांति को प्रतिष्ठित करती है जबकि यांग  शक्ति सूर्य की  गतिशीलता और उत्साह को प्रतिष्ठित करती है | स्वस्थ व्यक्ति में  दोनों शक्तियों का पूर्णतया संतुलन होता है , जबकि रोगी व्यक्ति के शरीर में यह दोनों शक्तियां असंतुलित रहती हैं | एक्यूपंक्चर चिकित्सा पद्धति में  यिन और यंग दोनों शक्तियों को संतुलित करके रोगों का उपचार किया जाता है |


पंचतत्व

एक्यूपंक्चर चिकित्सा पद्धति में यह माना जाता है कि मनुष्य के शरीर में पांच तत्व होते हैं, जो मनुष्य के शरीर को शक्तिशाली और स्वस्थ बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं | इन तत्वों की यदि हम चर्चा करें तो इसमें पहला तत्व होता है ...

पृथ्वी तत्व : मनुष्य के शरीर में पृथ्वी तत्व ,उसके मूलाधार चक्र में स्थित होता है | पृथ्वी तत्वों का गुण यह होता है कि मनुष्य के शरीर को यह स्थिरता प्रदान करता है इसका सीधा संबंध मनुष्य के स्थूल शरीर से होता है उसकी मांसपेशियों से होता है इसलिए यदि किसी व्यक्ति का पृथ्वी तत्व और स्थिर होता है तो उसके मूल आधार चक्र पर सबसे पहले हम काम करते हैं तो पृथ्वी तत्व संतुलित होता है


 आकाश तत्व 

आकाश तत्व मनुष्य की अखंडता और शून्यता को बनाए रखना है जिस व्यक्ति का आकाश तत्व संतुलित होता है उसकी अखंडता और शून्यता प्रभावित नहीं होती है वह बरकरार रहती है संबंधित यदि इंद्री की बात करें तो आकाश तत्व उसके श्रवण शक्ति से संबंधित होता है जबकि यह इसके विशुद्धि चक्र में स्थित होता है इसका भौतिक प्रभाव यह होता है कि व्यक्ति की सुसाना नई ब्रह्म रंध्र इसकी उच्च स्थिति में स्थिर रहते हैं




जल तत्व

जल तत्वों का गुण यह होता है कि यह मनुष्य के शरीर को शीतलता प्रदान करता है और उसकी तापमान को नियंत्रित रखता है इस जल तत्व का सीधा संबंध मनुष्य की जिह्वा से होता है और इसका मनुष्य के शरीर में जो स्थान होता है वह स्वादिष्ठान चक्र में होता है यदि किसी व्यक्ति का जल तत्व असंतुलित होता है तो उसके स्वाधिष्ठान चक्र पर कार्य किया जाता है जिससे कि उसका जल तत्व संतुलित हो जल तत्वों का भौतिक प्रभाव उसे व्यक्ति के रक्त अंग और नर्वस सिस्टम पर पड़ता है यदि किसी व्यक्ति का रक्त दूषित हो जाता है या नर्वस सिस्टम डिस्टर्ब हो जाता है तो एक्यूपंक्चर में उसकी जल तत्व को संतुलित करने का कार्य किया जाता है

 वायु तत्व


वायु तत्व मनुष्य के शरीर में गतिशीलता को बनाए रखना है इसका सीधा संबंध मनुष्य की त्वचा से होता है यदि इसकी ग्रंथियां की बात करें तो वायु तत्व अनाहत चक्र से संबंधित होता है यदि किसी व्यक्ति के शरीर में वायु चक्र असंतुलित होता है तो उसका स्वास्थ्य प्रभावित होता है शरीर में प्राण वायु की कमी होती है और उसके शरीर में विषाणुओं की अधिकता हो जाती है यदि किसी व्यक्ति के शरीर में स्वास्थ्य संबंधी विकार उत्पन्न हो जाए प्राण वायु की कमी हो जाए या शरीर में विषाक्त रोग होने लगे तो सबसे पहले उसके वायु चक्र को संतुलित करने का कार्य एक्यूपंक्चर में किया जाता है

मेरेडियन बिंदु क्या हैं ?

मेरेडियन बिंदु  मानव शरीर में एक ऐसी संरचना हैं , जिससे शरीर के प्रत्येक कोशिका और ऊतक जुड़े हुए होते हैं | मेरेडियन बिंदु पर उचित दबाव डाल कर मनुष्य शरीर में होने वाले दर्द को काम किया जा सकता हैं !

दबाव डालने के लिए हाथ और पेअर में दबाव बिंदु निर्धारित किया गया हैं , जिस पर अंगूठे से उचित दबाव डाल कर उस अंग में ऊर्जा को संचालित किया जा सकता हैं और उस अंग के रोग को सही किया जा सकता हैं |

अकुपंक्चरे करने की प्रणाली क्या हैं ?

अकुपंक्चरे मेथड को समझने के पहले इसके कुछ शब्द को समझना जरुरी हैं |

क्यू.इ. : यह जीवन की एक महत्वपूर्ण ऊर्जा हैं , जो शरीर के हर चीज में व्याप्त हैं | यह वो विशेषता हैं जो किसी व्यक्ति के शरीर के स्वस्थ्य की स्थिति को निर्धारित करता हैं | 


यिन और यांग  : ये दोनों मनुस्य के शरीर में स्थित दो शक्तिया हैं  , जिनके संतुलन से मनुष्य का शरीर स्वस्थ्य रहता हैं | क्यू. इ.  पर उचित मात्रा मैं दबाव डाल कर यिन और यांग दोनों शक्तियों को जागृत किया जा सकता हैं और शरीर के रोग को उचित दबाव डाल कर सही किया जा सकता हैं |

जांग और फु  :  जंग में शरीर के पांच अंग सम्मिलित किये जाते हैं | यह अंग हृदय , यकृत ,प्लीहा ,फेफड़ा और गुर्दा हैं | जबकि फु मैं  छह  अंगो को लिया जाता हैं | ये अंग पित्ताशय , पेट , छोटी आंत ,बड़ी आंत , मूत्राशय और ट्रिपल एनर्जाईजर शामिल हैं |

अक्युपंक्चर में अंगुली , अंगुली के पोर , केहुनी , अंगूठे , और पैर  के बिंदुओं पर  एक मिनट से लेकर एक घंटे तक दबाव डाल कर रोग को सही किया जाता हैं |


एक्सूप्रेससुरे के उपकरण : इसके कई सारे उपकरण होते हैं , जिनका प्रयोग हम अकुपंक्चर में किया जाता हैं |


एक्सूप्रेससुरे फुट बोर्ड 
रिंग 
कांटेदार बेलन 
स्प्रिंग प्रेशर रॉक 
कांटेदार शू  शोल 

अकुपंक्चरे और आयुर्वेदा 

आयुर्वेदा में अक्युपंक्चे को मर्म के नाम से जाना जाता हैं | आयुर्वेदा में मर्म चिकित्सा यानि की अक्युपंक्चे , पुरे शरीर में १०७ मर्म बिंदु होते हैं |

मर्म  के प्रकार :

एनाटॉमिकल आधार पर मर्म  पांच प्रकार के होते हैं :

  1. Mansa (Muscle marma)
  2. Sandhi (Joint marma)
  3. Asthi (Bone marma)
  4. Snayu (Ligament marma)
  5. Sira (Blood vessel marma)
गुण और विशेषता के आधार पर मर्म चार प्रकार के होते हैं |
  1. Saumya marma ( कफ )
  2.  Vayavyu marma (वायु )
  3.  Agneya marma (पित्त )
  4. Saumyaagneya marma ( कफ और पित्त )

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